दिल्ली के चिल्ला गांव का ऐतिहासिक श्मशान घाट तोड़ा गया कोर्ट के आदेश से गांव में नाराज़गी
🏡 चिल्ला गांव की ऐतिहासिक विरासत
पूर्वी दिल्ली में स्थित चिल्ला गांव लगभग 400 से 500 वर्षों पुराना है। यह गांव अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। गांव के निवासियों के अनुसार, यहां का श्मशान घाट भी उतना ही पुराना है, जहां पीढ़ियों से अंतिम संस्कार की परंपरा चली आ रही थी। यह श्मशान घाट न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का केंद्र था, बल्कि गांव की सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी था।
दिल्ली के चिल्ला गांव का ऐतिहासिक श्मशान घाट तोड़ा गया कोर्ट के आदेश से गांव में नाराज़गी
⚖️ विवाद की शुरुआत और न्यायालय का आदेश
हाल ही में, मयूर कुंज निवासी कल्याण मंच (Mayur Kunj Resident Welfare Forum) ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि चिल्ला गांव का श्मशान घाट अवैध रूप से स्थापित किया गया है और यह पर्यावरणीय और अन्य नियमों का उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि श्मशान घाट से निकलने वाला धुआं और गंध स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और यह दिल्ली मास्टर प्लान 2021 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए संबंधित अधिकारियों को कार्रवाई करने का निर्देश दिया, जिसके परिणामस्वरूप श्मशान घाट को तोड़ने की कार्रवाई की गई।
🧑🤝🧑 गांववासियों की प्रतिक्रिया और विरोध
श्मशान घाट के विध्वंस के बाद, चिल्ला गांव के निवासियों में गहरा आक्रोश उत्पन्न हुआ। उनका कहना था कि यह श्मशान घाट उनकी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा है, और इसे बिना उनकी सहमति के तोड़ना उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
गांववासियों ने कई विरोध प्रदर्शन किए और धरने पर बैठे। उनका कहना था कि श्मशान घाट के विध्वंस से उन्हें अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए दूर स्थित गाजीपुर श्मशान घाट जाना पड़ेगा, जिससे उन्हें आर्थिक और मानसिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
🔍 वर्तमान स्थिति और भविष्य की राह
वर्तमान में, चिल्ला गांव के निवासी इस निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील करने की योजना बना रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि वे अपने पारंपरिक श्मशान घाट को पुनः स्थापित कर सकें और अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा कर सकें।
🧾 निष्कर्ष: परंपरा बनाम पर्यावरणीय नियम
यह विवाद परंपरा और पर्यावरणीय नियमों के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता को दर्शाता है। जहां एक ओर स्थानीय समुदाय अपनी सांस्कृतिक परंपराओं और धार्मिक अधिकारों की रक्षा करना चाहता है, वहीं दूसरी ओर शहरी नियोजन और पर्यावरणीय सुरक्षा के नियमों का पालन भी आवश्यक है।
डिस्क्लेमर: यह समाचार विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है, न कि किसी पक्ष या व्यक्ति के प्रति पूर्वाग्रह दिखाना।