मामूरा गांव में निशुल्क नेत्र जांच शिविर: 151 मरीजों की जांच, 11 चिन्हित मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए

 

मामूरा गांव में निशुल्क नेत्र जांच शिविर: 151 मरीजों की जांच, 11 चिन्हित मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए


नोएडा, 12 सितंबर 2025
स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच हर व्यक्ति तक होनी चाहिए, चाहे वह शहर के पॉश इलाकों में रहता हो या किसी गांव की तंग गलियों में। इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए आज मामूरा गांव, नोएडा में दिल्ली हैल्थ केयर कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड और डॉ. एल.के. गांधी श्रॉफ हॉस्पिटल के सौजन्य से एक निशुल्क नेत्र जांच शिविर एवं मोतियाबिंद ऑपरेशन शिविर का आयोजन किया गया।

इस विशेष शिविर का संचालन स्थानीय समाजसेवी आनंद पाल चौहान के सहयोग से किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ पूर्व उप निदेशक तकनीकी शिक्षा श्री सी.के. शर्मा ने किया।


शिविर का उद्देश्य और महत्व

आज के समय में आंखों की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। मोबाइल और कंप्यूटर के अधिक उपयोग से युवाओं में आंखों की कमजोरी आम हो चुकी है, जबकि बुजुर्गों में मोतियाबिंद की समस्या लगातार देखने को मिलती है। महंगे इलाज और निजी अस्पतालों के खर्च आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। ऐसे में इस तरह के निशुल्क स्वास्थ्य शिविर ग्रामीण और शहरी गरीब तबके के लिए जीवनदायिनी साबित होते हैं।

श्री शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि “समय-समय पर ऐसे कार्यक्रम समाज में सकारात्मक बदलाव लाते हैं। स्वास्थ्य सेवा को केवल इलाज तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है।”


कितने लोगों की हुई जांच?

  1. शिविर में सुबह से ही ग्रामीणों की भीड़ उमड़ने लगी। कुल 151 लोगों की नेत्र जांच की गई।
  2. इनमें से 11 मरीजों को मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए चयनित किया गया।

  3. लगभग 65 लोगों को निशुल्क आई ड्रॉप प्रदान की गई।

  4. कई लोगों को नियमित आंखों की देखभाल और खानपान से जुड़ी सलाह दी गई।

  5. इस तरह शिविर ने न सिर्फ लोगों का इलाज किया बल्कि उन्हें आंखों की सेहत के प्रति जागरूक भी किया।

विशेषज्ञों और टीम का योगदान

इस शिविर का नेतृत्व श्री देवेंद्र पाल सिंह दलाल ने किया।
टीम में शामिल विशेषज्ञों और मेडिकल स्टाफ ने ग्रामीणों की आंखों की बारीकी से जांच की। इनमें प्रमुख नाम रहे:

  • डॉ. नितीशा मेम

  • श्री नागभट्ट पोसवाल

  • कुमारी मनीष, स्नेहा (ऑप्टोम)

  • आयशा, नेहा, खुशी, स्नेहा, काजल, पी.एस.सी.

इन सभी ने अपने-अपने स्तर पर मरीजों को जांच, परामर्श और इलाज उपलब्ध कराया।


स्थानीय सहयोग और संगठन की भूमिका

कार्यक्रम को सफल बनाने में कई संस्थाओं और व्यक्तियों का सहयोग रहा।

  • दिल्ली हैल्थ केयर कोऑपरेटिव सोसायटी लि. के अध्यक्ष गजेन्द्र पाल सिंह सारन

  • जय श्री शारदा कोऑपरेटिव टीसी सोसायटी लि. के प्रबंधक निर्दोष तेवतिया

  • श्री आसबीर सिंह

  • माननीय श्री श्याम लाल यादव

इन सबका सहयोग शिविर के संचालन और आयोजन में अहम रहा।


लोकल एंगल: मामूरा गांव क्यों है खास?

नोएडा का मामूरा गांव तेजी से शहरीकरण की दौड़ में शामिल हो चुका है। यहां बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर और कामकाजी लोग रहते हैं। ज्यादातर लोग निजी अस्पतालों की फीस नहीं उठा सकते, इसलिए सरकारी या निशुल्क स्वास्थ्य शिविर ही उनकी उम्मीद होते हैं।

इस इलाके में प्रदूषण, धूल और लंबे समय तक स्क्रीन पर काम करने की वजह से आंखों की समस्याएं अधिक देखने को मिलती हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि “सरकारी अस्पताल दूर हैं और निजी अस्पताल महंगे। ऐसे में यह शिविर हमारे लिए वरदान जैसा है।”


मेरा एनालिसिस: क्यों जरूरी हैं ऐसे शिविर?

मेरे अनुभव और रिपोर्टिंग के आधार पर कह सकता हूं कि भारत जैसे देश में जहां बड़ी आबादी निम्न और मध्यम वर्ग से जुड़ी है, वहां स्वास्थ्य सेवाओं का ग्रामीण और वंचित तबकों तक पहुंचना बेहद जरूरी है।

  1. मोतियाबिंद एक गंभीर समस्या – भारत में हर साल लाखों लोग मोतियाबिंद के कारण अपनी दृष्टि खो देते हैं। लेकिन अगर समय पर जांच हो जाए तो सर्जरी के जरिए आसानी से इलाज संभव है।

  2. लोगों की जागरूकता कम – आंखों की छोटी समस्या को लोग नजरअंदाज कर देते हैं, जो आगे चलकर बड़ी बीमारी का रूप ले लेती है। ऐसे शिविर जागरूकता बढ़ाते हैं।

  3. निजी अस्पतालों की ऊंची फीस – गरीब परिवार 15-20 हजार रुपये के ऑपरेशन का खर्च नहीं उठा पाते। मुफ्त ऑपरेशन उन्हें जीवन की नई रोशनी देता है।

  4. सामुदायिक सहयोग की मिसाल – इस शिविर ने दिखाया कि जब समाज के लोग और संस्थाएं एक साथ आते हैं तो बदलाव संभव होता है।


निष्कर्ष

आज का यह आयोजन सिर्फ एक स्वास्थ्य शिविर नहीं था, बल्कि यह एक संदेश भी था कि समाज के हर वर्ग को स्वास्थ्य सेवाओं का हक है। मामूरा गांव के लोगों ने न सिर्फ अपनी आंखों की जांच करवाई बल्कि स्वास्थ्य के प्रति नई सोच भी अपनाई।

इस कार्यक्रम ने यह साबित किया कि यदि संस्थाएं, डॉक्टर और समाजसेवी मिलकर काम करें तो स्वास्थ्य सेवाओं की रोशनी हर घर तक पहुंच सकती है।


लेखक: कुलदीप चौहान, पत्रकार

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